सुल्तानी बेटी – Short Stories in Hindi – Aladdin’s Story Part 3 (Hindi)

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सुल्तानी बेटी – Short Stories in Hindi – Aladdin’s Story Part 3 (Hindi)

युवा राजकुमारी जैस्मिन अपने ही भले के लिए बहुत चतुर थीं। उसे पहले से ही राजनीतिक बैठकों में भाग लेने का मौका मिल गया था। राजकुमारी को अच्छे अनुभवी दिखाया जाता था, और जिसको उसे पसंद आता था वह असल सरकारी अधिकारी से भी अधिक अच्छे अनुभवी दिखाया जाता था।

हालांकि, वह चतुरता उसे बहुत से फायदे नहीं पहुंचाती थी। लोग उसकी आगाही को बहुत चिंता पूर्वक सुना करते थे और उसके पीछे के कुछ सदस्यों की आँखों में अध्यापिका विद्यालय में आपशिकारी साजना बैठी युवा राजकुमारी को एक विचित्रता नजर आती थी।

एक बार जब मैं निकटतम था, जब मैं यह शब्द कहने के लिए तैयार था, तो मैंने निस्तेज आँखों से राजकुमारी को जांचते हुए देखा। “शुभ संध्या राजकुमारी,” मैंने कहा,

राजकुमारी जैस्मिन ने मुझसे उँचाई से देखा। “क्या है?” उसने कहा। “मैं ज्यादा खुशहाल होने के लिए कह सकता हूँ?”

“तुम कहाँ रहना चाहोगी?” मैंने उन्हें पूछा।

वह मुंह बनाकर उत्तर नहीं दिया। वह मुझसे देखने लगी। “तुम्हें मेरी योजना का नहीं मिला है?” उसने कहा। “मैं जब चाहूं तब चली जाऊँगी या फिर… पालटी तुम्हारी की तुलना में अच्छी हूँ?”

मैंने अपने मुस्कान से उत्तर दिया, “शायद तुम्हारे चाहने वाले बनने की चेष्टा कर रही हूं।”

उसकी आँखें खुल गईं। उसे लगा कि वह जीत गई थी, लेकिन मैं अभी खुश नहीं था।

आख़िरकार, मैंने कहा, “जब हम साथ होंगे, तब हम इस राज्य की जिम्मेदारियों और जांच के सामने खड़े होंगे। और शायद उससे हमें कुछ अधिक स्वतंत्रता मिल जाएगी।”

वह धीरे से मुस्कराई। “तुम्हारे बारे में जो भी हो, तुम एक बड़े बच्चे हो,” उसने कहा।

“एक बड़े बच्चे?” मैंने पूछा। “क्या मतलब है?”

उसने कहा, “वहाँ जिम्मेदारियाँ होती हैं।”

मैंने बिना कुछ कहे, उसकी कमर पर हाथ रख दिया। उसने मुझसे नीचे देखा। मेरे होंठों पर उसकी उम्मीदें और उसकी खामोशी देखी गई। उसके सवालों का जवाब नहीं दिया जा सकता था। वह अपनी आँखों में एक बड़ी ज़िम्मेदारी और आत्मविश्वास देखती थी, जिसे वह पूरे दिल से अपनाने की कोशिश कर रही थी। इस समय, उसे देख कर मुझे अपनी विशेषता की अनुमति दी गई थी।

“अब चलिए,” मैंने कहा, उसके कंधे पर एक हाथ रखते हुए, “चलिए हम साथ मिलकर इस राज्य को संभालते हैं।”

वह एक छोटी सी मुस्कान देते हुए उत्तर दिया, “आप कुछ सहायता चाहिए तो बस कहिए, राजकुमार धीरेन।”

मैंने उसे एक विशेष नज़र दी, फिर उसे छोड़ा और अपने रास्ते बढ़ गया। जब मैं घर लौटा तो मैंने महसूस किया कि मेरा जीवन बदल चुका था। मेरा भाई मुज़ुलाईन का राजकुमार नहीं था, लेकिन मुझे उसे राजकुमारी जैस्मिन के जीवन का एक बड़ा हिस्सा बनने में मदद करने का यह नया काम मिल गया था। यह अब मेरे लिए नया एक संबोधन था। शायद मैं राजकुमार नहीं था, लेकिन मुझे नए काम का आनंद था। इसमें भी कुछ खास था।

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