अकबर बादशाह, इंडिया के विख्यात सम्राटों में से एक थे। उनकी न्यायप्रियता, सामर्थ्य और विवेकपूर्ण निर्णयों से लोग उन्हें सम्मान करते थे। वे हमेशा समाज के भलाई के लिए काम करते थे और अपने प्रजा के प्रति समर्पित थे।
एक दिन, अकबर की महाल के नजदीकी बाजार में एक गरीब फ़क़ीर बीरबल नामक युवक का दृश्य आया। बीरबल के मासूम चेहरे और अद्भुत बुद्धिमत्ता ने अकबर के मन में रुचि पैदा की। उन्हें बीरबल के समझदारी और बुद्धिमत्ता के प्रति दिलचस्पी हुई।
अकबर बीरबल के पास गए और पूछा, “कौन हो तुम, और क्या काम करते हो?”
बीरबल ने विनम्रता से उत्तर दिया, “महाराज, मैं एक फ़क़ीर हूँ और भिखारी का काम करता हूँ। मेरे पिता बहुत गरीब हैं और मैं उनका प्यारा बेटा हूँ। उन्हें पालने के लिए मैं रोज भिखारी करने जाता हूँ।”
अकबर बीरबल के ईमानदार जवाब से प्रभावित हुए और उन्हें अपने दरबार में बुलवाने के लिए निर्धारित किया। वहां पहुंचकर अकबर ने बीरबल से कुछ मुद्दे पर चर्चा की और उनकी बुद्धिमत्ता के सामाजिक समस्याओं का समाधान पूछा।
बीरबल की चालाकी और तत्कालिक विचारधारा ने अकबर को हैरान किया। अकबर ने तुरंत उन्हें अपने साथ राजनीतिक परिवार में शामिल किया और उन्हें एक अधिकारी के रूप में नियुक्त किया।
इस प्रकार, अकबर और बीरबल की पहली मुलाक़ात हुई। बीरबल ने अकबर के मन में एक ख़ास जगह बना ली और उनके प्रजा के लिए विशेष दिलचस्पी जगाई। इस पहले मुलाक़ात के बाद से, अकबर बीरबल को अपना सबसे विश्वासी और मानने वाला साथी मानने लगे और दोनों के बीच अनगिनत मनोरंजक और शिक्षाप्रद संवाद हुए।
यह कहानी हमें दिखाती है कि सत्य और सच्चाई के साथ भिखारी से लेकर एक सम्राट तक का सफर कैसे होता है, और बुद्धिमत्ता और विवेक की महत्ता कैसे हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अकबर और बीरबल की इस पहली मुलाक़ात ने उनकी दोस्ती की शुरुआत की और बाद में इन्हें एक-दूसरे के विचारों के साथ जीवन भर के साथियों बना दिया।